काना और लंगड़ा राजा
"अपनी भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापों से तू मुझे पवित्र कर "
(भजन 19:12)
"अपनी भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापों से तू मुझे पवित्र कर "
(भजन 19:12)
एक राज्य में राजा था वह
कला का बड़ा शौकीन था। परन्तु वह एक आँख से काना और एक पैर से लंगड़ा भी था। जिसके कारण
उसे कई बार उसे शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता था। एक दिन उसके मन में यह विचार आया
कि क्यों न मैं अपनी एक प्रतिमा बनवाऊं। जिससे राजा के आने वाली पीढ़ी भी उसे स्मरण
कर सके। प्रतिमा बनवाने के लिए उसने देश प्रदेश से प्रतिमा बनाने वाले प्रसिद्ध कलाकारों
को निमन्त्रण दिया गया। प्रतिमा बनाने की शर्त यह थी कि प्रतिमा में राजा को पराक्रमी,
शूरवीर दिखाना था और जिसमें कुछ झूठ भी न हो और जो कमी राजा में है प्रतिमा में वो
दिखाई भी न दे। सभी कलाकारों ने बहुत सोच विचार किया परन्तु उनके समझ से बाहर की बात
थी। कि ऐसा कैसे हो सकता है कि प्रतिमा में सच्चाई भी हो और पराक्रमी और शूरवीर मूर्ति
कानेपन और लंगड़ेपन के साथ। यह सामंजस्य एक साथ बैठाना बड़ा ही मुश्किल था।
एक एक करके सभी कलाकारों ने मूर्ति बनाने से मना कर दिया। परन्तु एक कलाकार जो उसी राज्य का था जो राजा से सचमुच बहुत प्यार करता था और आदर करता था। उसने राजा से कहा क्या मैं कोशिश करूं। आज्ञा पाने के बाद उसने कुछ ही समय में एक मूर्ति बना के राजमहल में लेकर आया। राजा और राज्य के सभी लोग उस मूर्ति को देखकर बहुत ही खुश हुए और सबने मूर्तिकार को खूब सराहा। मूर्तिकार ने राजा की मूर्ति कुछ इस तरह से बनाइ थी कि राजा एक पैर को नीचे की ओर दबाकर, दुसरे पैर से गुटने टेकते हुए अपने दोनों हाथो से तीर और धनुष से युद्ध के लिए एक आँख बंद करते हुए निशाना साध रहे हैं।
जिसमें वे शूरवीर भी नजर आ रहे है और उनकी समस्त कमजोरी भी बिना झूठ बताए छिप गयी है। दूसरों की गलतियाँ निकालना आसान है परन्तु उनकी गलतियों पर पर्दा डालना कला है।
एक एक करके सभी कलाकारों ने मूर्ति बनाने से मना कर दिया। परन्तु एक कलाकार जो उसी राज्य का था जो राजा से सचमुच बहुत प्यार करता था और आदर करता था। उसने राजा से कहा क्या मैं कोशिश करूं। आज्ञा पाने के बाद उसने कुछ ही समय में एक मूर्ति बना के राजमहल में लेकर आया। राजा और राज्य के सभी लोग उस मूर्ति को देखकर बहुत ही खुश हुए और सबने मूर्तिकार को खूब सराहा। मूर्तिकार ने राजा की मूर्ति कुछ इस तरह से बनाइ थी कि राजा एक पैर को नीचे की ओर दबाकर, दुसरे पैर से गुटने टेकते हुए अपने दोनों हाथो से तीर और धनुष से युद्ध के लिए एक आँख बंद करते हुए निशाना साध रहे हैं।
जिसमें वे शूरवीर भी नजर आ रहे है और उनकी समस्त कमजोरी भी बिना झूठ बताए छिप गयी है। दूसरों की गलतियाँ निकालना आसान है परन्तु उनकी गलतियों पर पर्दा डालना कला है।
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